Wednesday, March 24, 2010

'अपूर्ण'

एक आलमारी भरी हुई,
medals और trophies से,
newspaper की वो cuttings,
है जिनमें ज़िक्र कहीं,
या हमारी कोई तस्वीर,
वो भारी भरकम folder,
certificates से भरा हुआ...

कविताओं और कहानियों से भरी,
वो कितनी सारी diaries,
वो unpublished, incomplete novel,
'उसके' कहने पर जिसे,
'अपूर्ण' ही रहने दिया,
पर bestseller लिख दिया था,
अपनी handwriting में...

जाने अनजाने कितने चेहरे,
 जिनमें हमेशा तलाशा मैंने,
कभी 'उसे' कभी खुद को...

एक दिन सब रह जायेगा,
यहीं, और 'अपूर्ण'.....


ऐसे ही ख़याल कुछ बोये,
बरसों पहले एक डायरी में,
पन्ने कितने हमने खोये,
जिंदगी की इस शायरी में...

प्यास बड़ी है लिखने की,
जितना लिखोगे उतनी बढ़ेगी,
कविता भी है जिंदगी जैसी,
'अपूर्ण' है, 'अपूर्ण' रहेगी...

Monday, March 08, 2010

दुबारा कब आओगे...

हवा का एक तेज झोंका,
आया था मुझसे मिलने,
कमरे की खिड़की आधी खोल गया...

कुछ खास था इस झोंके में,
हर झोंका नहीं आता मुझ तक,
खिड़की खोलकर, कुछ कहने...
हर झोंका लेकर नहीं आता,
एक खास खुशबू साथ अपने,
काँच पर खिड़की के मेरे,
लिखकर नहीं जाता हर झोंका...
कुछ खास तो था ये झोंका...

जाने क्यों, लगा जैसे,
लगा जैसे, तुम आये थे,
और छूकर चले गये...

खिड़की खुली है तभी से,
और नज़रें हैं कि,
नाम नहीं लेतीं हटने का,
उस अधखुली खिड़की से...
कान बैठे हैं ध्यान लगाये,
हो कोई तो आहट,
जो दे संदेशा आन्धी का...
और होठों पर एक ही सवाल,
दुबारा कब आओगे...