पूछते रहते थे लोग,
अक्सर मुझसे ये सवाल,
किसके लिए लिखते हो,
कौन है वो खुशनसीब,
जिसके लिए लिखते हो...
बेकार था मेरा बताना,
कि बस यूँ ही लिख देता हूँ,
किसी ने ये ना माना,
कि अपने लिए लिखता हूँ...
पर हाँ ये सच है कि वो मैं नहीं,
कोई और ही है वो,
जिसके लिए लिखता हूँ,
वो काल्पनिक चिड़िया...
जिसका कोई अस्तित्व है भी या नहीं,
मुझे पता नहीं,
मुझे खबर नहीं,
पर हाँ इतना जानता हूँ,
कोई तो है जो कहता है,
मैं हूँ,
और तेरे लिए ही हूँ,
पर उसकी सुनु तो,
पता नहीं क्यों अपने रूठ जाते हैं,
कितने सारे सपने टूट जाते हैं...
सोचता हूँ कभी ये सब छोड़ दूँ,
उस अनजान चिड़िया से मुंह मोड़ लूँ,
पर जाने क्यों दिल कहता है,
वो अजनबी होकर भी अजनबी नहीं,
वो अजनबी नहीं सिर्फ अनजान है,
एक अनजान चिड़िया,
वो काल्पनिक चिड़िया...