Tuesday, December 29, 2009

लगभग दो दिन... (द्वितीय भाग)

एक ऐसी ट्रेन,
जिसमें चढ़ना कोई चाहता नहीं,
और उतरने को कोई बचा नहीं,
रुकी है ऐसे स्टेशन पर,
जहाँ कोई नजर नहीं आ रहा...

घंटों रुक कर जब ट्रेन खुली,
जल्दी ही दुबारा रुक गयी,

ड्राईवर ने inverse function लगा दिया शायद...

Monday, December 21, 2009

लगभग दो दिन... (प्रथम भाग)

नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन,
प्लॅटफॉर्म नंबर 14 पर,
कुछ बेजान और,
कुछ साँस लेते,
सामानो के बीच,
अपने आप को,
बहुत अकेला पाया...

तेरी ट्रेन भी ना,
प्लॅटफॉर्म नंबर 2 पर क्यों आई...

Sunday, December 13, 2009

जिंदगी का सफ़र...

याद है,
वो पहली मंजिल,
जहाँ सचेत किया था,
रास्ते ने मुझे,
के मुसाफिर,
थमना नहीं,
कई मुकाम बाकी है,
जीतने के लिए,
मुकम्मल जहान बाकी है...
चाँद सूरज गिने तो क्या,
तारों से भरा,
ये आसमान बाकी है...

फिर क्या,
चलते ही जा रहे,
उस राह पर हम,
जिसपर कोई भी,
आखिरी मंजिल नहीं...
हैं तो बस चंद पड़ाव,
रास्ता बताते हुए,
अगले पड़ाव का...

Wednesday, December 09, 2009

आज भी…


क्या अब भी मिलती हो तुम, 
सबसे वैसे ही मुस्कुरा कर, 
या तेरे अंदर भी बना लिया, 
है खामोशी ने अपना घर... 

बोल पाती हो वैसे ही सब, 
शब्द शब्द अक्षर अक्षर, 
या फिर मेरी बातों में, 
काँप सा जाता है तेरा स्वर... 

अब भी हवा के झोंके, 
लगते हैं तुमको प्यारे, 
या जीते हैं वो भी, 
मेरी तरह यादों के सहारे… 

जीती हो जिंदगी आज भी, 
उसी उमंग औ ख़ुशी के साथ, 
या बस रह गयी हैं सांसें, 
बेजान जिस्म के साथ… 

मैं तो…

आज भी करता हूँ सजदे, 
फर्श के उस हिस्से पर, 
कुछ पल बिताए थे, 
साथ में हमने जहाँ पर...



 त्रिवेणी 


तेरे साथ की सारी यादें,
सँजोकर रख ली है मैने,

काश! तुमको भी रख पता यूँ ही...

Monday, December 07, 2009

आखिर बुझ गया...

वो दीया,
हाँ वही,
जो जलता आ रहा है,
आंधी, पानी, तूफ़ान,
सब झेल गया,
और जलता ही रहा,
इस उम्मीद में,
के इक दिन पायेगा,
तेरे हाथों की छाँव,
और अमर हो जायेगा,
हमेशा हमेशा के लिए...
वो दीया!!!
आज हवा के,
एक हल्के झोंके ने,
बुझा दिया उसको,
हाँ,
ठीक समझा तुमने,
वही झोंका हवा का,
जो लेकर आई तुम,
अपने आँचल के साथ...
खुश ही होगा,
फिर भी वो दीया,
बुझा तो क्या,
आँचल तो तेरा था!!!

Saturday, December 05, 2009

सिगरेट भी पूरी नही जलती…

(1)
फ़ुर्सत निकाल कर ज़िंदगी से,
जाओ कभी वापस बचपन,

तुमको तुम मिल जाओ शायद
***
(2)
याद है मुझे अब भी वो दिन,
रो रही थी तुम शायद,

भीगी पलकों से ठीक से दिखा नही
***
(3)
रौशन करते जग को उमर भर,
नील गगन के तारे,

कहाँ जाते हैं ये टूट कर
***
(4)
जी लो ज़िंदगी जब तक है,
वरना ख़त्म तो ही जाएगी,

सुलगती सिगरेट है ज़िंदगी
***
(5)
कौन जी पाया है,
पूरी ज़िंदगी आज तक,

सिगरेट भी पूरी नही जलती
***

Saturday, November 28, 2009

ज्यामिति कमजोर थी...

(१)
अब तो आदत सी हो गयी है,
सितम सहने की हमें,


कभी इंटरनेट तो कभी तुम...
***
(२)
डर लगता है मुझे,
कैसे काटेंगे बिन तेरे,


उम्र है कोई रात नही है...
***
()
चलते रहे सीधी लाइन पर,
लिए मन में पुनर्मिलन की आस,


हम दोनों की ज्यामिति कमजोर थी...
***
(४)
पहुँच तो गया था मैं,
सही वक़्त पर तुझे मनाने,


क्या पता था, तेरी घड़ी फास्ट है...
***
(५)
जाने कबसे घड़ी ख़राब थी,
ठीक करवा कर ले आया हूँ,


समय अब भी सही नहीं हुआ...
***

Thursday, November 19, 2009

'१० जनपथ' में 'जनता' ढूंढ़ रहा हूँ!!!

भूखे तुम, हम ऐश कर रहे
लोकतंत्र की जय जयकार,

आखिर तुमने हमें "चुना" है...
***
२ 
छुट्टियाँ खराब करके बनाया, 
एक सांचा उपर वाले ने, 

और तुझे बनाकर उसे तोड़ दिया...
***
३ 
बेशक बहुत मेहनत का, 
होता होगा खुदा का काम, 

तुझे देखकर यकीन हो आया है...
***
४ 
जनतन्त्र में, सुना था 
जनता का शासन होता है, 

शासन शोषण का फ़र्क खोज रहा हूँ...

(पहले ऐसा लिखा था:
५ 
जनतन्त्र में, सुना था 
जनता का शासन होता है, 

'१० जनपथ' में 'जनता' ढूंढ़ रहा हूँ!!!)

Sunday, November 15, 2009

राजस्थान पत्रिका में 'मेरा कुछ सामान...'



10 नवम्बर 2009 को राजस्थान पत्रिका, जयपुर संस्करण के नियमित स्तंभ 'ब्लॉग चंक' में मेरा कुछ सामान... की एक कविता


बी एस पाबला जी का बहुत बहुत आभार इस सूचना के लिए..

Sunday, November 08, 2009

चीज कमाल है बिसलेरी भी...


झूम उठा मेरा जहान,
तुम जो मिलने आई मुझे,
काश ये ख्वाब नहीं हकीक़त होता...

ठहर  पाए आँखों में,
निकल गए आंसू सारे,
तुम जो बसे हो इन आँखों में...

एक समंदर सा बना डाला,
इन आंसुओं का हमने देखो,
स्टॉक बहुत बड़ा है आंसुओं का...

बहुत रो रहे हैं हम आजकल,
सुना है आंसू नमकीन होते हैं,
तभी तो समंदर खारा हो गया है...

कितनी ही बोतल पी गया,
तेरे बिछड़ने के बाद,
चीज कमाल है बिसलेरी भी...

Tuesday, November 03, 2009

रह पाओ जिंदा मरने के बाद भी...


कभी लिखा था मैंने, 
"जियो कुछ ऐसे कि,
रह पाओ जिंदा तुम,
मरने के बाद भी..."
आज बात आगे बढा रहा हूँ अपनी...

गौतम बुद्ध की पावन धरती,
अब न रही महफूज़ यारों...

कब तक तुम खामोश रहोगे,
अब तो करो आगाज़ यारों...

गली अँधेरी अपनी ही है,
जागो, करो  उजाला यारों...

सोये हुए हैं बरसों से सब,
कोई सबको जगाओ यारों..

बुझे बुझे हैं दिल सबके,
कोई तो शमा जलाओ यारों...

जियो तुम कुछ इस तरह कि,
मरने के बाद भी जी पाओ यारों...

Sunday, November 01, 2009

जगह नहीं आंसू के लिए...


साथ देती ही क्यों हो,
पल दो पल का मुझे,
ख़्वाबों में कभी कभी,
देने मुझे आंसुओं का साथ,
क़यामत तक के लिए...

समंदर रेत को हमने,
है आंसुओं से कर दिया,
आओ कभी जिंदगी में भी,
निकल कर ख़्वाबों से,
तुम भी देखने के लिए...

आंसू की एक बूँद से पूछा,
क्यों निकले आँखों से बाहर,
नाम लिया था उसने तेरा,
रहती हो तुम आँखों में जो,
जगह नहीं आंसू के लिए...

मरते ही रहते हैं हर पल,
जीते हैं बस ख़्वाबों में ही,
काश कि रह पाते,
ख़्वाबों में ही हम,
उमर भर के लिए...


(The lines written over the picture aren't mine.)

Wednesday, October 28, 2009

जन्मदिन मुबारक महफूज़ भाई...

आज हमारे महफूज़ भाईजान का जन्मदिन है. जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो भैया.
हमने सोचा क्यों न उनके जन्मदिन पर अपना कुछ टूटा फूटा लिखने कि बजाय उन्ही का लिखा एक सॉलिड आइटम पेश किया जाये...
तो पेश है "SEE THIS BOY" by Mahfooz Ali


This boy says he is a king, 


and he can be all he can be,
he lives life like royalty,
and love being who he be...

This boy shakes his head
over what people say...
he know,
he is not perfect anyway
but he don't let them get in his way...

This boy has dreams,
dreams that will take him far,
he is ready to show the world,
his thoughts will make him strong...

This boy...not a king,
this boy...not a perfect,
this boy...has a dream,
this boy is me and he the best,
no matter,
what the world see...




Yes, definitely this boy is THE best. Happy birthday again...

Sunday, October 25, 2009

ग्रामीण विद्यालय

काश वहां "विकास" न होता,
जहाँ हम पढ़ा करते थे,
पीपल के इक पेड़ तले...

विद्या और विद्यालय दोनों,
ख़ाक हो गए थे फिर जलके,
उस जलते पीपल के तले...
                                                                               
शिक्षक भी घर बैठे बैठे,
"निस्वार्थ" हैं देने लगे ट्यूशन,
उनका धंधा भी फुले फले...

आसमान पर प्राइवेट कोचिंग,
कागजों पर हैं विद्यालय,
अफसरशाही की छांव तले...

गाँव में शिक्षा की ये हालत,
रह न गयी अब देखने लायक,
लो, अम्बुज भी शहर चले...

Friday, October 23, 2009

हमेशा के लिए...

तेरे दिए कुछ उपहार
चंद मेल जो स्टार्ड (तारांकित) थे,
आज से पहले,

वो अनगिनत जी टॉक चैट,
कुछ हसीं और कुछ ग़मगीं,

पल तेरी यादों के,
वो तस्वीर तेरी जो,
वालपेपर हुआ करती थी,
कभी मेरे डेस्कटॉप का,

आज सब शिफ्ट + डिलीट हो गए...
चिता जल रही थी,
तेरे साथ के ख़यालों की,
उसी में ये भी जल गए...
हमेशा हमेशा के लिए...

और तुम भी हो गए,
शिफ्ट + डिलीट जिंदगी से मेरी,
हमेशा हमेशा के लिए...

Wednesday, October 21, 2009

तेरे ख़त, और उनके जवाब

तेरे वो सारे ख़त,
जो तुने कभी नहीं लिखे,
बस दिल में ही रखा,
और तुम समझती हो,
मुझ तक नहीं पहुंचे,
नहीं पहुंचे होंगे शायद,
पर उनके जवाब नहीं तो,
और क्या थे,
कागज़ के वो चंद टुकड़े,
जिन्हें आज जला आया हूँ...

Tuesday, October 20, 2009

एक अरसे के बाद...


चाँद निकला है फिर,
आज अपनी गली में,
एक अरसे के बाद...

ये दिल-ए-बर्बाद भी,
देखो आबाद हुआ है,
आज बरसों के बाद...

न सुना ऐसा कभी पर,
है कमल रेत में खिला,
तेरे आने के बाद...

आके फिर से न जाना तुम,
जिंदगी ही चली जायेगी,
तेरे जाने के बाद...

थी भी कहाँ जिंदगी यहाँ,
साथ आई है तेरे वो भी,
एक अरसे के बाद...

चाँद निकला है फिर,
आज अपनी गली में,
एक अरसे के बाद...

Monday, October 19, 2009

तुम अब भी क्यों हो...

तब जबकि तुम थे,
सिर्फ तुम ही थे,
पर तुम अब भी क्यों हो,
जबकि तुम तो चले गए...

सफलता के आसमां पर आकर,
याद आ रहे हैं वो रेत जिससे,
ज़मीं पर हमने खेला है...

सफ़र था तो हमसफ़र थे,
ऊफ़्फ़, ये जीतने की ललक!!
मंजिल पे दिल अकेला है...

सोचते थे नीचे से देखकर,
क्या होगा उस शिखर पर?
कुछ नहीं, ग़म-ए-तन्हाई है...

पीछा ही करते रह गए हम,
जिंदगी का जिंदगी भर, और अब
बस यादों की परछाई है...

(और अंत में, रुस्तम सहगल जी की पंक्तियाँ:
क्या खबर थी, इस तरह से वो जुदा हो जायेगा,
ख्वाब में भी उसका मिलना, ख्वाब ही बन जायेगा...)

Sunday, October 18, 2009

फिर रंग दे बसंती...

अत्याचार बढा था हमपर,
बना था बोझ अंग्रेजी शाषण,
अपने ही घर में अपमानित,
हमने कहा था रंग दे बसंती...

साठ साल अपना राज,
पिछड़े के पिछड़े हैं रहे हम,
भरता जा रहा स्विस बैंक,
अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती...

गाँधी की खादी को पहन कर,
गाँधी छपा नोट हैं लेते,
देश बेच दें पैसों खातिर,
अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती...

क्यों न हो आतंकी हमले,
जब राज कर रहे बड़े आतंकी,
भ्रष्ट हो गए हैं सारे दल,
अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती...

महंगाई चरम पर पहुंची,
भूखी मरे गरीब जनता,
ऐश कर रहा है जब राजा,
अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती...

आज जरुरत आन पड़ी है,
करते हैं हम ये आह्वान,
फिर से कोई भगत सिंह आये,
कहने को, फिर रंग दे बसंती...

Friday, October 16, 2009

ऐसे मनाएं हम ये दिवाली...

जब से यहाँ आया हूँ, दीपावली बहुत miss  करता हूँ... घर से बाहर ये मेरी तीसरी  दीपावली  है... और बिना पटाखों के ५वी ... जब से मुझे दीपावली का सही मतलब समझ में आया, मैंने पटाखे जलाने बंद कर दिए... इस दीपावली को सार्थक रूप में मनाने की अपील करता हूँ... 

बिना पटाखे, बिन जुए के,
आओ मनाएं हम ये दिवाली...

दीप जलाएं अंतर्मन का,
फुलझरियां हों खुशियों वाली,
मीठे बोल बनें मिष्ठान्न,
ऐसे मनाएं हम ये दिवाली...

खुशियाँ मांगे माँ से हम सब,
झोली कोई रहे न खाली,
द्वेष भाव सब मिट जाये,
ऐसे मनाएं हम ये दिवाली...

मतलब समझें पर्व का हम,
तभी मनाएं ईद दिवाली,
जीवन में ही उतर आये ये,
ऐसे मनाएं हम ये दिवाली..

Wednesday, October 14, 2009

पनाहों में तेरी हम, एक ठिकाना चाहते हैं...

चमन के फूल भी,
तेरी तारीफ में खिलते हैं, 
मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

तासीर इस हुस्न की ऐसी 
सब को है तसव्वुर तेरा, 
खोए तेरे ही ख़याल में, 
सब दिन रात रहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

तारीफ में तेरी जो चाँद, 
अपने तरानो में कहा, 
तेरे हुस्न की तौहीन इसे, 
मेरे जज़्बात कहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

हुस्न और हिज़ाक़त के, 
मेल ऐसे ना देखे हमने, 
मुकम्मल जहाँ में बस, 
एक आप ऐसे रहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

परस्तिश करें तेरी, 
कहती हैं ख्वाहिशें, 
खुदा तुमको बनाने का,
एक बहाना चाहते हैं...

ये सब नही कहते होंगे, 
बस हम ही कहते हैं...
अब तो चाहत नहीं,
इसके सिवा कुछ भी,
पनाहों में तेरी हम, 
एक ठिकाना चाहते हैं...  
ये सब नही कहते होंगे, 
बस हम ही कहते हैं...

Sunday, October 11, 2009

वो काल्पनिक चिड़िया

पूछते रहते थे लोग,
अक्सर मुझसे ये सवाल,
किसके लिए लिखते हो,
कौन है वो खुशनसीब,
जिसके लिए लिखते हो...
बेकार था मेरा बताना,
कि बस यूँ ही लिख देता हूँ,
किसी ने ये ना माना,
कि अपने लिए लिखता हूँ...
पर हाँ ये सच है कि वो मैं नहीं,
कोई और ही है वो,
जिसके लिए लिखता हूँ,
वो काल्पनिक चिड़िया...
जिसका कोई अस्तित्व है भी या नहीं
मुझे पता नहीं
मुझे खबर नहीं
पर हाँ इतना जानता हूँ
कोई तो है जो कहता है
मैं हूँ
और तेरे लिए ही हूँ
पर उसकी सुनु तो
पता नहीं क्यों अपने रूठ जाते हैं
कितने सारे सपने टूट जाते हैं...
सोचता हूँ कभी ये सब छोड़ दूँ,  
उस अनजान चिड़िया से मुंह मोड़ लूँ
पर जाने क्यों दिल कहता है
वो अजनबी होकर भी अजनबी नहीं
वो अजनबी नहीं सिर्फ अनजान है
एक अनजान चिड़िया,


वो काल्पनिक चिड़िया...

Friday, October 09, 2009

यकीन...

तुम जानो न जानो,
दिल से तुम्हें ही,
हर वक़्त याद करते हैं...

तुम मिलो न मिलो,
दुआ ख़ुशी की तेरी ही,
हम दिल से करते हैं...

तुम आओ न आओ,
ख्वाबो में तुम्हारा ही,
हम इंतजार करते हैं...

क्योंकि...

तुम कहो न कहो,
प्यार है तुझे मुझसे ही,
हम ये यकीन करते हैं...

Thursday, October 08, 2009

ज़माना सुलग उठा

गीत प्यार के सब लिखते हैं,
हम प्यार कर बैठे तो,
ज़माना सुलग उठा...

जीते हो अपनी जिंदगी हर रोज,
एक दिन हमारी जी ली तो,
ज़माना सुलग उठा...

कोई नहीं था बिना जाम के
उस महफिल में,
मैंने थोड़ी छलका दी तो,
ज़माना सुलग उठा...

तुने भी तो था दुपट्टे में मुखड़ा छुपाया,
मैंने तुझे छुपकर देख लिया तो,
ज़माना सुलग उठा...

तुने भी तो है देखा सपना मेरा,
मेरे ख्वाब में तुम आ गयी तो,
ज़माना सुलग उठा...

दिल में तो तेरे भी है मेरा ही नाम,
मैं होठों पर तेरा नाम ले आया तो,
ज़माना सुलग उठा...

नींद तो तेरी आँखों में भी नहीं,
मैं रात भर जगता रहा तो,
ज़माना सुलग उठा...

Monday, October 05, 2009

वो कली मुस्काई

वो कली मुस्काई,
और गुलाब बन गयी,
देखते ही हो जाये नशा,
ऐसा वो शराब बन गयी...

यूँ ही इतनी खूब थी,
वो सबका ख्वाब बन गयी,
निकली जब सज संवर के,
और लाजवाब बन गयी...

जिसने भी देखा एक झलक,
उसी के दिल का ताज बन गयी,
वो कली मुस्काई,
और गुलाब बन गयी...

Thursday, September 24, 2009

भूल नहीं पाऊंगा

इक आहट पर जो,
आँखें उठाई तो,
देखा सामने वो है...


कोई था उसके साथ,
बिलकुल मेरे ही जैसा
शायद वो मैं ही था...


बातें करते रहे देर तक,
आ गए थे बहुत पास,
अनजाने ही दोनों...


आँखें बंद हुई, और फिर
आँख खुल गयी...

उफ़ ये आवाज़ कैसी..

सामने अलार्म छोड़कर,
और कुछ भी न था,
आये या न आये मुझको यकीन,
पर हाँ ये सपना ही था...


कुछ सपने, सुना है, सच हो जाते हैं..
सच हो न हो,
ये सपना, भूल नहीं पाऊंगा..

Wednesday, September 23, 2009

A dedication

You may think he’s hurt,
But you’re wrong dear,
The writer within him,
Gets the message clear…

Friendship isn’t all about,
Praising you day and night,
Its about telling the truth,
And keeping you right…

You did the same today,
And I am proud of you,
Again, he hasn't written good,
Still, Ambuj dedicates this to you…

Monday, September 21, 2009

ख़ुदा से बातें

पहले तो समझा,
कि वो ऑनलाइन ही नहीं,
फिर लगा शायद,
अदृश्य (invisible) हो,
ऑफलाइन सन्देश भी छोड़ा,
पर सब बेकार!
अब आया समझ में हमारी,
हमें ही दी जा रही है सजा,
वो तो है ऑनलाइन,
हमें ही block कर दिया गया है!

उफ्फ़, बेकार है ख़ुदा से बातें करना..


Saturday, September 19, 2009

IITR Diaries


We will always remember,
These great IITR days...
With friends whole night,
Talking and enjoying lays...

Going to class each day,
As early as nine or eight...
Missing the mess breakfast,
On waking up a bit late...

Sharing all joyous moments,
Having chaapo for everything...
Its someone's birthday,
Let's eat, drink, dance and sing...

Copying the tutorials,
Just before the submission...
Completing the lab records,
In the class, our only mission...

Night outs before each exam,
Forgetting after exam days...
We will always remember,
These great IITR days...

Wednesday, September 16, 2009

मैं और मेरे जज़्बात

बादल यहाँ भी थे बरसने ही को;
हम भी भीड़ में तन्हा तन्हा से थे;
पर न हमारी कलम रुसवा थी और न हम;
तभी तो उठाई कलम और कुछ लिखा था;
पढ़े जो हमने खुद के ही लिखे शब्द;
इरादा बदल डाला था बादलों ने;
और हम भी शायद तन्हा न रहे थे;
लिखता ही जा रहा हूँ तब से आज तक;
और अब हमारे बीच कोई तीसरा नहीं ;
बस मैं हूँ और मेरे जज़्बात हैं ;
जो मौके बेमौके कभी कभी,
उतर आते हैं कागजों पर...

Monday, September 14, 2009

मैं हिंदी हूँ

कितना आसान है,
कितना आसान है तुम्हारे लिए,
मुझे बस एक दिन याद करना,
साल भर गालियाँ देकर,
पूरे साल में बस एक दिन,
मेरी तारीफों के पुल बांधना,
मुझसे किये पुराने वादों को,
फिर से बेमतलब दुहराना,
अब तो ये वादे झूठे नहीं लगते,
क्योंकि यकीन हो आया है अब मुझे,
तेरे सारे वादे झूठे...
याद आता है सन पचास का,
वादा था कोई पंद्रह साल का,
बीते हैं मेरे इंतजार में,
उन्सठ या कोई साठ साल अब,
अब तो जान गए मुझको तुम,
या अब भी हो अनजान अंग्रेजों,
मैं हूँ तेरी मातृभाषा,
हाँ हाँ मैं हिंदी ही हूँ....

Saturday, September 12, 2009

फेर समय का

सपनो की दुनिया में गया हूँ,
याद आ रहे हैं बीते दिन,
जब रोज शाम क्रिकेट होती थी,
अब देखने का भी वक़्त नहीं है.

क्या दिन थे सुनहरे वो अपने,
खोये ख्वाबों में रहते थे हर पल,
क्या पता था दिन ऐसा आएगा,
जब सोने को इक रात नहीं है.

समय ने फेरा कैसा लिया ये,
सब दूर हो गए हैं हमसे,
बेगानों की बात मत करो,
अपनों का भी साथ नहीं है.

किसे पता था ऊपर चढ़ने का,
होता है इतना बुरा अंजाम,
खो गए हैं शिखरों पर आकर,
कोई भी अपने पास नहीं है.

Thursday, September 10, 2009

खोये हो अपने ही ख़यालों में,
कोई ग़म नहीं...
पर हर घडी है जिसको तेरा ही ख़याल,
वो भी तो कम नहीं...

Saturday, August 29, 2009

Wonder when you’d know

Wonder when you'd know,
I think of you and so,
Under the moonlight I lay,
Thinking of how to say,

In my dreams you be,
Looking ever more pretty,
You come close and I hold you,
Wish someday it be true.

You're near but still far away,
Keep watching you all day though,
Don't have the courage to say,
Wonder when you'd know.

Thursday, August 27, 2009

स्वप्न

दिन आज का है सबसे खूबसूरत अपने लिए,
सपने में ही सही, तुम हमारे पास तो आए...
दिल कहता है इस सपने में जीता रह,
पर क्यों न इसे हकीक़त बनाया जाए...



Saturday, August 22, 2009

तुम्हारी याद आई


आँखें नम हो चली हैं फिर से,
फिर से तुम्हारी याद आई...
बसे हुए हो आँखों में मेरी तुम,
झलक है जबसे दिखलाई..

देखा जो तुमने मुस्कुरा कर,
सारे शिकवे भूल गया हूँ...
दूर भले ही तू मुझसे हो,
मैं न कभी भी दूर गया हूँ...

बात हो गयी है जब तुमसे,
हो गया हूँ हल्का हल्का सा...
हट गया है आँखों के आगे से,
जो था कुछ धूंधलका सा...

फिर भी आँखें नम हो गयी हैं,
फिर भी तुम्हारी याद आई...

Friday, August 14, 2009

इंतजार

अब ख़तम ये मेरी परीक्षा हो,
लम्बा ये बहुत इंतजार हुआ...

की थी इक कोशिश अरसे बाद,
उनसे कुछ बातें कहने की...
लब खामोश रह गए फिर आज,
आदत न गयी चुप रहने की...

इधर उधर की बातें की पर,
वो कह नहीं पाए जो कहना था...
बात की ही क्यूँ आखिर मैंने,
गर मुझे चुप ही रहना था...

डर इस बात का नहीं की उनको,
पा लूँगा या फिर खो दूंगा...
पर खो दिया गर उनको तो मैं,
किसी और का भी हो न सकूँगा...

रात बीत रही मेरी इसी सोच में,
समझा रहा हूँ मैं खुद को...
होता तभी है कुछ भी यहाँ,
होना होता है जब उसको...

वक़्त आये जल्दी ही अपना,
इतनी सी है उससे मेरी दुआ...
अब ख़तम ये मेरी परीक्षा हो,
लम्बा ये बहुत इंतजार हुआ...

Tuesday, July 28, 2009

आरजू

आरजू की कोई तो बस ज़ख्म मिले,
हर ज़ख्म को हमने गले लगाया...
चाहत थी अमृत की तो विष मिले,
विष का प्याला भी मुंह से लगाया...

इतनी दूरी तो अपने दरम्यान,
फिर भी रह ही गयी...
मैं मरता रहा तेरे लिए और तू,
मेरे लिए जी भी नही पायी...

Thursday, July 23, 2009

आज सूरज को अंधेरों ने चुनौती दी

आज सूरज को अंधेरों ने चुनौती दी
लोग कहते हैं ये गलत है, नादानी है ...
सच है, नहीं बुझेगा सूरज कभी मगर
अंधेरों में भी एक दिन रौशनी आनी है ...

परवाह नहीं अब सूरज की ,
न ही जरुरत जुगनू की है ...
हमारे अँधेरे दूर करने के लिए
खुद का दीया ही बहुत है ...

कभी अंधेरो की मजबूरी भी समझो
वहां लोगों पर क्या गुजरती है ...
जिस सूरज ने उन्हें रौशनी न दी कभी
उसे चुनौती देने में क्या गलती है ...

ये कैसा न्याय था की सूरज भी
उ़जाले को ही रौशन करता रहा ...
अँधेरे में रहने वालों का दम
सूरज के रहते भी घुटता रहा ...

आज लोगों ने सिखा है सूरज के बिना
उजाले में अपना जीवन बीतना ...
उजालों की भीख मांगना छोड़ कर
खुद से एक एक दीया जलाना ...

हाँ अंधेरों ने आज ये जुर्रत की है
अंधेरों ने सूरज को चुनौती दी है

Sunday, June 21, 2009

जिंदगी मुझसे यूँ हैरान सी क्यूँ है

क्यूँ परेशान हूँ मैं जिंदगी से और
जिंदगी मुझसे यूँ हैरान सी क्यूँ है

पहुँच गये थे शिखरों पर
फिर हम ऐसे बर्बाद से क्यूँ हैं
अपनी बनाई ही तो थी सब राहें
तो हम यूँ गुमराह से क्यूँ हैं

क्यूँ परेशान हूँ मैं जिंदगी से और
जिंदगी मुझसे यूँ हैरान सी क्यूँ है
भटक रहा किसी के इंतज़ार में पर
जाता हूँ जिधर सुनसान ही क्यूँ है

सुनने को एक आवाज़ तरस रहा हूँ
सारी राहें वीरान सी क्यूँ है
क्यूँ परेशान हूँ मैं जिंदगी से और
जिंदगी मुझसे यूँ हैरान सी क्यूँ है

सबकुछ खोकर है पाया जिसको
वो मंज़िल ही बेकाम सी क्यूँ है
अब तक बस जिसको जाना है मैने
वो मुझसे अंजान सी क्यूँ है

क्यूँ परेशान हूँ मैं जिंदगी से और
जिंदगी मुझसे यूँ हैरान सी क्यूँ है