मेरा कुछ सामान...
कौन कहता है हर शब की सहर होती है, वो जो बिछड़े फ़िर कभी ना मिले...
Tuesday, December 29, 2009
लगभग दो दिन... (द्वितीय भाग)
एक ऐसी ट्रेन,
जिसमें चढ़ना कोई चाहता नहीं,
और उतरने को कोई बचा नहीं,
रुकी है ऐसे स्टेशन पर,
जहाँ कोई नजर नहीं आ रहा...
घंटों रुक कर जब ट्रेन खुली,
जल्दी ही दुबारा रुक गयी,
ड्राईवर ने inverse function लगा दिया शायद...
Monday, December 21, 2009
लगभग दो दिन... (प्रथम भाग)
नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन,
प्लॅटफॉर्म नंबर 14 पर,
कुछ बेजान और,
कुछ साँस लेते,
सामानो के बीच,
अपने आप को,
बहुत अकेला पाया...
तेरी ट्रेन भी ना,
प्लॅटफॉर्म नंबर 2 पर क्यों आई...
Sunday, December 13, 2009
जिंदगी का सफ़र...
याद
है
,
वो
पहली
मंजिल
,
जहाँ
सचेत
किया
था
,
रास्ते
ने
मुझे
,
के
ऐ
मुसाफिर
,
थमना
नहीं
,
कई
मुकाम
बाकी
है
,
जीतने
के
लिए
,
मुकम्मल
जहान
बाकी
है
...
चाँद
सूरज
गिने
तो
क्या
,
तारों
से
भरा
,
ये
आसमान
बाकी
है
...
फिर
क्या
,
चलते
ही
जा
रहे
,
उस
राह
पर
हम
,
जिसपर
कोई
भी
,
आखिरी
मंजिल
नहीं
...
हैं
तो
बस
चंद
पड़ाव
,
रास्ता
बताते
हुए
,
अगले
पड़ाव
का
...
Wednesday, December 09, 2009
आज भी…
क्या अब भी मिलती हो तुम,
सबसे वैसे ही मुस्कुरा कर,
या तेरे अंदर भी बना लिया,
है खामोशी ने अपना घर...
बोल पाती हो वैसे ही सब,
शब्द शब्द अक्षर अक्षर,
या फिर मेरी बातों में,
काँप सा जाता है तेरा स्वर...
अब भी हवा के झोंके,
लगते हैं तुमको प्यारे,
या जीते हैं वो भी,
मेरी तरह यादों के सहारे…
जीती हो जिंदगी आज भी,
उसी उमंग औ ख़ुशी के साथ,
या बस रह गयी हैं सांसें,
बेजान जिस्म के साथ…
मैं तो…
आज भी करता हूँ सजदे,
फर्श के उस हिस्से पर,
कुछ पल बिताए थे,
साथ में हमने जहाँ पर...
त्रिवेणी
तेरे
साथ
की
सारी
यादें
,
सँजोकर
रख
ली
है
मैने
,
काश
!
तुमको
भी
रख
पता
यूँ
ही
...
Monday, December 07, 2009
आखिर बुझ गया...
वो दीया,
हाँ वही,
जो जलता आ रहा है,
आंधी, पानी, तूफ़ान,
सब झेल गया,
और जलता ही रहा,
इस उम्मीद में,
के इक दिन पायेगा,
तेरे हाथों की छाँव,
और अमर हो जायेगा,
हमेशा हमेशा के लिए...
वो दीया!!!
आज हवा के,
एक हल्के झोंके ने,
बुझा दिया उसको,
हाँ,
ठीक समझा तुमने,
वही झोंका हवा का,
जो लेकर आई तुम,
अपने आँचल के साथ...
खुश ही होगा,
फिर भी वो दीया,
बुझा तो क्या,
आँचल तो तेरा था!!!
Saturday, December 05, 2009
सिगरेट भी पूरी नही जलती…
(1)
फ़ुर्सत
निकाल
कर
ज़िंदगी
से
,
जाओ
कभी
वापस
बचपन
,
तुमको
तुम
मिल
जाओ
शायद
…
***
(2)
याद
है
मुझे
अब
भी
वो
दिन
,
रो
रही
थी
तुम
शायद
,
भीगी
पलकों
से
ठीक
से
दिखा
नही
…
***
(3)
रौशन
करते
जग
को
उमर
भर
,
नील
गगन
के
तारे
,
कहाँ
जाते
हैं
ये
टूट
कर
…
***
(4)
जी
लो
ज़िंदगी
जब
तक
है
,
वरना
ख़त्म
तो
ही
जाएगी
,
सुलगती
सिगरेट
है
ज़िंदगी
…
***
(5)
कौन
जी
पाया
है
,
पूरी
ज़िंदगी
आज
तक
,
सिगरेट
भी
पूरी
नही
जलती
…
***
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