दे पाया ना सबको जहान मुकम्मल,
खुदा ये जहान बनाया क्यों है...
एक पल जी लेने की आस में,
हमने सिफ़र बस पाया क्यों है...
दिल में तो सबके घनघोर अंधेरा,
घर में दीया ये जलाया क्यों है...
दिखता नही अब चेहरा इसमें,
ऐसा आईना लगाया क्यों है...
रिश्ता नींद से कबका टूटा,
ख्वाब चौखट पे मेरी आया क्यों है...
6 comments:
बहुत अच्छा लिखते हो मियाँ
wah
lajwaab
nothing more to say.
दिखता नही अब चेहरा इसमें,
ऐसा आईना लगाया क्यों है...
ऐसे ही आइनों से लोग आजकल दूसरों का चेहरा देखते हैं। बहुत अच्छी रचना।
अच्छी गज़ल है अम्बरीश ।
Sorry Ambareesh, jab se laut ke aaya tumhara blog nhin dekh paya.. aaj dekha to laga tum to bahut mature ho gaye... behatreen gazal hai badhai..
Jai Hind...
अम्बरीश बउवा,
अरे बाबा ई कौन सा आईना है जिसमें चेहरा ही नहीं दिखता है....उठा कर फेंक दो...
बहुत सुन्दर लिखा है..हर शेर अपने आप में मुकम्मल है..
बहुत देत तक जागते हो रात में रोज....३ बजे ३.३० बजे तक कोई जागता है क्या...??
हम जानते हैं ...पढ़ाई के लिए ही जागते हो लेकिन मन बड़ा बेचैन हो जाता है..
समय पर सो जाया करो...और सुबह जल्दी उठो...:):)
आशीष ..
दीदी..
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