एक पुरानी डायरी टकरा गयी आज
पलटा तो मानो वक़्त पलट दिया
बिखर बिखर गए थे सफ़हे,
अल्फ़ाज़ मगर सलामत थे सारे
अल्फ़ाज़ मगर सलामत थे सारे
चंद फूल थे, रख लिए हैं सँभाल कर
कुछ सूखे पत्ते थे जो जला दिए
ये पत्तियाँ जो अब तक हरी हैं,
क्या करूँ इनका, कोई कुछ मशवरा दो
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बिसरी सी यादों को फिर मत हवा दो।
महक न मिटेगी,भले गुल जला दो।
न फिर शाख से अब जुड़ेंगे ये पत्ते,
इन्हें फिर उसी डायरी में दबा दो।
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