Monday, September 14, 2009

मैं हिंदी हूँ

कितना आसान है,
कितना आसान है तुम्हारे लिए,
मुझे बस एक दिन याद करना,
साल भर गालियाँ देकर,
पूरे साल में बस एक दिन,
मेरी तारीफों के पुल बांधना,
मुझसे किये पुराने वादों को,
फिर से बेमतलब दुहराना,
अब तो ये वादे झूठे नहीं लगते,
क्योंकि यकीन हो आया है अब मुझे,
तेरे सारे वादे झूठे...
याद आता है सन पचास का,
वादा था कोई पंद्रह साल का,
बीते हैं मेरे इंतजार में,
उन्सठ या कोई साठ साल अब,
अब तो जान गए मुझको तुम,
या अब भी हो अनजान अंग्रेजों,
मैं हूँ तेरी मातृभाषा,
हाँ हाँ मैं हिंदी ही हूँ....

8 comments:

Ankush Agrawal said...

bahut hi shaandaar.....
shabd nahi mil rahe hai aapki is rachna ki prashansha me

Ambarish said...

धन्यवाद..
न तो भारतीय संविधान और न ही कोई और कानून भारत की कोई राष्ट्रभाषा पारिभाषित करता है.. क्या यह शर्म की बात नहीं है??

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर अम्बुज……………………लिखते रहें । शुभकामनायें ।

स्वप्न मञ्जूषा said...

अपनी संस्कृति और अपनी भाषा का मज़ाक उडाना और उका बहिष्कार करना भारतीयों की परंपरा है....
हम विदेश में वर्षो से रह रहे हैं और इस थाती की संजोये हुए हैं ....भारत आकर जितनी अंग्रेजी हमें बोलनी पड़ती है उससे थोडी ही ज्यादा मैं कनाडा में बोलती हूँ....कोई काम नहीं होता अगर आप हिंदी बोल रहे हैं आपने अंग्रेजी झाड़ना शुरू किया नहीं के देखिये आपके सारे बिगड़ते काम कैसे बनते हैं......अगर आपको सम्मान चाहिए तो आप अंग्रेजी बोलें वर्ना 'तू कौन, मैं ख़म ख्वाह .....वाले मोड पर ह रहेंगे आप...
अंग्रेज चले गए अपने नालायक औलाद छोड़ गए हैं पीछे यही लगता हैं....
ये 'हिंदी दिवस' ही बेजा है......मदर्स डे, फादर्स डे ये सब क्या है ..
जिस तरह माँ-बाप के लिए हर दिन उनका दिन है ठीक वैसे ही भाषा के लिए हर पल भाषा को ही समर्पित है...
बहुत अच्छा लिखा है तुमने अम्बुज...
बस लिखते रहो और क्या.....कम से कम नवयुवा पीढी को देख कर मन के किसी कोने में एक आस जो जगती है !!

Ambarish said...

धन्यवाद अदा जी..
आज हालत ये हो चुकी है कि यहाँ पर मेरे मित्र गर्व से बताते हैं कि मैं तो घरवालों से भी अंग्रेजी में बात करता हूँ... माफ़ी चाहूंगा उम्र नहीं है मेरी ऐसे निष्कर्ष निकालने की, पर कभी कभी लगता है कि हिन्दुस्तान के अन्दर हिन्दुस्तान बहुत कम बचा है अब... बहुत ख़ुशी होती है जानकर कि आपलोग विदेश में रहकर भी हिंदी के इतने करीब हैं..

Anonymous said...

hey good going..... keet it up

Unknown said...

this one is really good!!

shikha varshney said...

कितना सच कहा है आपने...और अदा जी की बात से में १००% सहमत हूँ ....बस आप्जैसी नै पीडी से ही आशा का दिया जला है..लिखते रहिये.