Saturday, November 28, 2009

ज्यामिति कमजोर थी...

(१)
अब तो आदत सी हो गयी है,
सितम सहने की हमें,


कभी इंटरनेट तो कभी तुम...
***
(२)
डर लगता है मुझे,
कैसे काटेंगे बिन तेरे,


उम्र है कोई रात नही है...
***
()
चलते रहे सीधी लाइन पर,
लिए मन में पुनर्मिलन की आस,


हम दोनों की ज्यामिति कमजोर थी...
***
(४)
पहुँच तो गया था मैं,
सही वक़्त पर तुझे मनाने,


क्या पता था, तेरी घड़ी फास्ट है...
***
(५)
जाने कबसे घड़ी ख़राब थी,
ठीक करवा कर ले आया हूँ,


समय अब भी सही नहीं हुआ...
***

Thursday, November 19, 2009

'१० जनपथ' में 'जनता' ढूंढ़ रहा हूँ!!!

भूखे तुम, हम ऐश कर रहे
लोकतंत्र की जय जयकार,

आखिर तुमने हमें "चुना" है...
***
२ 
छुट्टियाँ खराब करके बनाया, 
एक सांचा उपर वाले ने, 

और तुझे बनाकर उसे तोड़ दिया...
***
३ 
बेशक बहुत मेहनत का, 
होता होगा खुदा का काम, 

तुझे देखकर यकीन हो आया है...
***
४ 
जनतन्त्र में, सुना था 
जनता का शासन होता है, 

शासन शोषण का फ़र्क खोज रहा हूँ...

(पहले ऐसा लिखा था:
५ 
जनतन्त्र में, सुना था 
जनता का शासन होता है, 

'१० जनपथ' में 'जनता' ढूंढ़ रहा हूँ!!!)

Sunday, November 15, 2009

राजस्थान पत्रिका में 'मेरा कुछ सामान...'



10 नवम्बर 2009 को राजस्थान पत्रिका, जयपुर संस्करण के नियमित स्तंभ 'ब्लॉग चंक' में मेरा कुछ सामान... की एक कविता


बी एस पाबला जी का बहुत बहुत आभार इस सूचना के लिए..

Sunday, November 08, 2009

चीज कमाल है बिसलेरी भी...


झूम उठा मेरा जहान,
तुम जो मिलने आई मुझे,
काश ये ख्वाब नहीं हकीक़त होता...

ठहर  पाए आँखों में,
निकल गए आंसू सारे,
तुम जो बसे हो इन आँखों में...

एक समंदर सा बना डाला,
इन आंसुओं का हमने देखो,
स्टॉक बहुत बड़ा है आंसुओं का...

बहुत रो रहे हैं हम आजकल,
सुना है आंसू नमकीन होते हैं,
तभी तो समंदर खारा हो गया है...

कितनी ही बोतल पी गया,
तेरे बिछड़ने के बाद,
चीज कमाल है बिसलेरी भी...

Tuesday, November 03, 2009

रह पाओ जिंदा मरने के बाद भी...


कभी लिखा था मैंने, 
"जियो कुछ ऐसे कि,
रह पाओ जिंदा तुम,
मरने के बाद भी..."
आज बात आगे बढा रहा हूँ अपनी...

गौतम बुद्ध की पावन धरती,
अब न रही महफूज़ यारों...

कब तक तुम खामोश रहोगे,
अब तो करो आगाज़ यारों...

गली अँधेरी अपनी ही है,
जागो, करो  उजाला यारों...

सोये हुए हैं बरसों से सब,
कोई सबको जगाओ यारों..

बुझे बुझे हैं दिल सबके,
कोई तो शमा जलाओ यारों...

जियो तुम कुछ इस तरह कि,
मरने के बाद भी जी पाओ यारों...

Sunday, November 01, 2009

जगह नहीं आंसू के लिए...


साथ देती ही क्यों हो,
पल दो पल का मुझे,
ख़्वाबों में कभी कभी,
देने मुझे आंसुओं का साथ,
क़यामत तक के लिए...

समंदर रेत को हमने,
है आंसुओं से कर दिया,
आओ कभी जिंदगी में भी,
निकल कर ख़्वाबों से,
तुम भी देखने के लिए...

आंसू की एक बूँद से पूछा,
क्यों निकले आँखों से बाहर,
नाम लिया था उसने तेरा,
रहती हो तुम आँखों में जो,
जगह नहीं आंसू के लिए...

मरते ही रहते हैं हर पल,
जीते हैं बस ख़्वाबों में ही,
काश कि रह पाते,
ख़्वाबों में ही हम,
उमर भर के लिए...


(The lines written over the picture aren't mine.)