Wednesday, October 28, 2009

जन्मदिन मुबारक महफूज़ भाई...

आज हमारे महफूज़ भाईजान का जन्मदिन है. जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो भैया.
हमने सोचा क्यों न उनके जन्मदिन पर अपना कुछ टूटा फूटा लिखने कि बजाय उन्ही का लिखा एक सॉलिड आइटम पेश किया जाये...
तो पेश है "SEE THIS BOY" by Mahfooz Ali


This boy says he is a king, 


and he can be all he can be,
he lives life like royalty,
and love being who he be...

This boy shakes his head
over what people say...
he know,
he is not perfect anyway
but he don't let them get in his way...

This boy has dreams,
dreams that will take him far,
he is ready to show the world,
his thoughts will make him strong...

This boy...not a king,
this boy...not a perfect,
this boy...has a dream,
this boy is me and he the best,
no matter,
what the world see...




Yes, definitely this boy is THE best. Happy birthday again...

Sunday, October 25, 2009

ग्रामीण विद्यालय

काश वहां "विकास" न होता,
जहाँ हम पढ़ा करते थे,
पीपल के इक पेड़ तले...

विद्या और विद्यालय दोनों,
ख़ाक हो गए थे फिर जलके,
उस जलते पीपल के तले...
                                                                               
शिक्षक भी घर बैठे बैठे,
"निस्वार्थ" हैं देने लगे ट्यूशन,
उनका धंधा भी फुले फले...

आसमान पर प्राइवेट कोचिंग,
कागजों पर हैं विद्यालय,
अफसरशाही की छांव तले...

गाँव में शिक्षा की ये हालत,
रह न गयी अब देखने लायक,
लो, अम्बुज भी शहर चले...

Friday, October 23, 2009

हमेशा के लिए...

तेरे दिए कुछ उपहार
चंद मेल जो स्टार्ड (तारांकित) थे,
आज से पहले,

वो अनगिनत जी टॉक चैट,
कुछ हसीं और कुछ ग़मगीं,

पल तेरी यादों के,
वो तस्वीर तेरी जो,
वालपेपर हुआ करती थी,
कभी मेरे डेस्कटॉप का,

आज सब शिफ्ट + डिलीट हो गए...
चिता जल रही थी,
तेरे साथ के ख़यालों की,
उसी में ये भी जल गए...
हमेशा हमेशा के लिए...

और तुम भी हो गए,
शिफ्ट + डिलीट जिंदगी से मेरी,
हमेशा हमेशा के लिए...

Wednesday, October 21, 2009

तेरे ख़त, और उनके जवाब

तेरे वो सारे ख़त,
जो तुने कभी नहीं लिखे,
बस दिल में ही रखा,
और तुम समझती हो,
मुझ तक नहीं पहुंचे,
नहीं पहुंचे होंगे शायद,
पर उनके जवाब नहीं तो,
और क्या थे,
कागज़ के वो चंद टुकड़े,
जिन्हें आज जला आया हूँ...

Tuesday, October 20, 2009

एक अरसे के बाद...


चाँद निकला है फिर,
आज अपनी गली में,
एक अरसे के बाद...

ये दिल-ए-बर्बाद भी,
देखो आबाद हुआ है,
आज बरसों के बाद...

न सुना ऐसा कभी पर,
है कमल रेत में खिला,
तेरे आने के बाद...

आके फिर से न जाना तुम,
जिंदगी ही चली जायेगी,
तेरे जाने के बाद...

थी भी कहाँ जिंदगी यहाँ,
साथ आई है तेरे वो भी,
एक अरसे के बाद...

चाँद निकला है फिर,
आज अपनी गली में,
एक अरसे के बाद...

Monday, October 19, 2009

तुम अब भी क्यों हो...

तब जबकि तुम थे,
सिर्फ तुम ही थे,
पर तुम अब भी क्यों हो,
जबकि तुम तो चले गए...

सफलता के आसमां पर आकर,
याद आ रहे हैं वो रेत जिससे,
ज़मीं पर हमने खेला है...

सफ़र था तो हमसफ़र थे,
ऊफ़्फ़, ये जीतने की ललक!!
मंजिल पे दिल अकेला है...

सोचते थे नीचे से देखकर,
क्या होगा उस शिखर पर?
कुछ नहीं, ग़म-ए-तन्हाई है...

पीछा ही करते रह गए हम,
जिंदगी का जिंदगी भर, और अब
बस यादों की परछाई है...

(और अंत में, रुस्तम सहगल जी की पंक्तियाँ:
क्या खबर थी, इस तरह से वो जुदा हो जायेगा,
ख्वाब में भी उसका मिलना, ख्वाब ही बन जायेगा...)

Sunday, October 18, 2009

फिर रंग दे बसंती...

अत्याचार बढा था हमपर,
बना था बोझ अंग्रेजी शाषण,
अपने ही घर में अपमानित,
हमने कहा था रंग दे बसंती...

साठ साल अपना राज,
पिछड़े के पिछड़े हैं रहे हम,
भरता जा रहा स्विस बैंक,
अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती...

गाँधी की खादी को पहन कर,
गाँधी छपा नोट हैं लेते,
देश बेच दें पैसों खातिर,
अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती...

क्यों न हो आतंकी हमले,
जब राज कर रहे बड़े आतंकी,
भ्रष्ट हो गए हैं सारे दल,
अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती...

महंगाई चरम पर पहुंची,
भूखी मरे गरीब जनता,
ऐश कर रहा है जब राजा,
अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती...

आज जरुरत आन पड़ी है,
करते हैं हम ये आह्वान,
फिर से कोई भगत सिंह आये,
कहने को, फिर रंग दे बसंती...

Friday, October 16, 2009

ऐसे मनाएं हम ये दिवाली...

जब से यहाँ आया हूँ, दीपावली बहुत miss  करता हूँ... घर से बाहर ये मेरी तीसरी  दीपावली  है... और बिना पटाखों के ५वी ... जब से मुझे दीपावली का सही मतलब समझ में आया, मैंने पटाखे जलाने बंद कर दिए... इस दीपावली को सार्थक रूप में मनाने की अपील करता हूँ... 

बिना पटाखे, बिन जुए के,
आओ मनाएं हम ये दिवाली...

दीप जलाएं अंतर्मन का,
फुलझरियां हों खुशियों वाली,
मीठे बोल बनें मिष्ठान्न,
ऐसे मनाएं हम ये दिवाली...

खुशियाँ मांगे माँ से हम सब,
झोली कोई रहे न खाली,
द्वेष भाव सब मिट जाये,
ऐसे मनाएं हम ये दिवाली...

मतलब समझें पर्व का हम,
तभी मनाएं ईद दिवाली,
जीवन में ही उतर आये ये,
ऐसे मनाएं हम ये दिवाली..

Wednesday, October 14, 2009

पनाहों में तेरी हम, एक ठिकाना चाहते हैं...

चमन के फूल भी,
तेरी तारीफ में खिलते हैं, 
मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

तासीर इस हुस्न की ऐसी 
सब को है तसव्वुर तेरा, 
खोए तेरे ही ख़याल में, 
सब दिन रात रहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

तारीफ में तेरी जो चाँद, 
अपने तरानो में कहा, 
तेरे हुस्न की तौहीन इसे, 
मेरे जज़्बात कहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

हुस्न और हिज़ाक़त के, 
मेल ऐसे ना देखे हमने, 
मुकम्मल जहाँ में बस, 
एक आप ऐसे रहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

परस्तिश करें तेरी, 
कहती हैं ख्वाहिशें, 
खुदा तुमको बनाने का,
एक बहाना चाहते हैं...

ये सब नही कहते होंगे, 
बस हम ही कहते हैं...
अब तो चाहत नहीं,
इसके सिवा कुछ भी,
पनाहों में तेरी हम, 
एक ठिकाना चाहते हैं...  
ये सब नही कहते होंगे, 
बस हम ही कहते हैं...

Sunday, October 11, 2009

वो काल्पनिक चिड़िया

पूछते रहते थे लोग,
अक्सर मुझसे ये सवाल,
किसके लिए लिखते हो,
कौन है वो खुशनसीब,
जिसके लिए लिखते हो...
बेकार था मेरा बताना,
कि बस यूँ ही लिख देता हूँ,
किसी ने ये ना माना,
कि अपने लिए लिखता हूँ...
पर हाँ ये सच है कि वो मैं नहीं,
कोई और ही है वो,
जिसके लिए लिखता हूँ,
वो काल्पनिक चिड़िया...
जिसका कोई अस्तित्व है भी या नहीं
मुझे पता नहीं
मुझे खबर नहीं
पर हाँ इतना जानता हूँ
कोई तो है जो कहता है
मैं हूँ
और तेरे लिए ही हूँ
पर उसकी सुनु तो
पता नहीं क्यों अपने रूठ जाते हैं
कितने सारे सपने टूट जाते हैं...
सोचता हूँ कभी ये सब छोड़ दूँ,  
उस अनजान चिड़िया से मुंह मोड़ लूँ
पर जाने क्यों दिल कहता है
वो अजनबी होकर भी अजनबी नहीं
वो अजनबी नहीं सिर्फ अनजान है
एक अनजान चिड़िया,


वो काल्पनिक चिड़िया...

Friday, October 09, 2009

यकीन...

तुम जानो न जानो,
दिल से तुम्हें ही,
हर वक़्त याद करते हैं...

तुम मिलो न मिलो,
दुआ ख़ुशी की तेरी ही,
हम दिल से करते हैं...

तुम आओ न आओ,
ख्वाबो में तुम्हारा ही,
हम इंतजार करते हैं...

क्योंकि...

तुम कहो न कहो,
प्यार है तुझे मुझसे ही,
हम ये यकीन करते हैं...

Thursday, October 08, 2009

ज़माना सुलग उठा

गीत प्यार के सब लिखते हैं,
हम प्यार कर बैठे तो,
ज़माना सुलग उठा...

जीते हो अपनी जिंदगी हर रोज,
एक दिन हमारी जी ली तो,
ज़माना सुलग उठा...

कोई नहीं था बिना जाम के
उस महफिल में,
मैंने थोड़ी छलका दी तो,
ज़माना सुलग उठा...

तुने भी तो था दुपट्टे में मुखड़ा छुपाया,
मैंने तुझे छुपकर देख लिया तो,
ज़माना सुलग उठा...

तुने भी तो है देखा सपना मेरा,
मेरे ख्वाब में तुम आ गयी तो,
ज़माना सुलग उठा...

दिल में तो तेरे भी है मेरा ही नाम,
मैं होठों पर तेरा नाम ले आया तो,
ज़माना सुलग उठा...

नींद तो तेरी आँखों में भी नहीं,
मैं रात भर जगता रहा तो,
ज़माना सुलग उठा...

Monday, October 05, 2009

वो कली मुस्काई

वो कली मुस्काई,
और गुलाब बन गयी,
देखते ही हो जाये नशा,
ऐसा वो शराब बन गयी...

यूँ ही इतनी खूब थी,
वो सबका ख्वाब बन गयी,
निकली जब सज संवर के,
और लाजवाब बन गयी...

जिसने भी देखा एक झलक,
उसी के दिल का ताज बन गयी,
वो कली मुस्काई,
और गुलाब बन गयी...