आरजू की कोई तो बस ज़ख्म मिले,
हर ज़ख्म को हमने गले लगाया...
चाहत थी अमृत की तो विष मिले,
विष का प्याला भी मुंह से लगाया...
इतनी दूरी तो अपने दरम्यान,
फिर भी रह ही गयी...
मैं मरता रहा तेरे लिए और तू,
मेरे लिए जी भी नही पायी...
हर ज़ख्म को हमने गले लगाया...
चाहत थी अमृत की तो विष मिले,
विष का प्याला भी मुंह से लगाया...
इतनी दूरी तो अपने दरम्यान,
फिर भी रह ही गयी...
मैं मरता रहा तेरे लिए और तू,
मेरे लिए जी भी नही पायी...
1 comment:
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