Thursday, September 24, 2009

भूल नहीं पाऊंगा

इक आहट पर जो,
आँखें उठाई तो,
देखा सामने वो है...


कोई था उसके साथ,
बिलकुल मेरे ही जैसा
शायद वो मैं ही था...


बातें करते रहे देर तक,
आ गए थे बहुत पास,
अनजाने ही दोनों...


आँखें बंद हुई, और फिर
आँख खुल गयी...

उफ़ ये आवाज़ कैसी..

सामने अलार्म छोड़कर,
और कुछ भी न था,
आये या न आये मुझको यकीन,
पर हाँ ये सपना ही था...


कुछ सपने, सुना है, सच हो जाते हैं..
सच हो न हो,
ये सपना, भूल नहीं पाऊंगा..

2 comments:

Mumukshh Ki Rachanain said...

आँख खुल गयी मेरी..
सामने अलार्म छोड़कर,
और कुछ भी न था,

कविता लिखने का प्रयास अच्छा रहा. लिखते रहे......उत्तरोत्तर प्रगति होगी.
हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

हरकीरत ' हीर' said...

कुछ सपने, सुना है,

सच हो जाते हैं..

कोशिश करते रहे क्या पता सच हो जाये ....!!