Sunday, December 13, 2009

जिंदगी का सफ़र...

याद है,
वो पहली मंजिल,
जहाँ सचेत किया था,
रास्ते ने मुझे,
के मुसाफिर,
थमना नहीं,
कई मुकाम बाकी है,
जीतने के लिए,
मुकम्मल जहान बाकी है...
चाँद सूरज गिने तो क्या,
तारों से भरा,
ये आसमान बाकी है...

फिर क्या,
चलते ही जा रहे,
उस राह पर हम,
जिसपर कोई भी,
आखिरी मंजिल नहीं...
हैं तो बस चंद पड़ाव,
रास्ता बताते हुए,
अगले पड़ाव का...

12 comments:

Udan Tashtari said...

सुन्दर चिन्तनमयी कविता.

स्वप्न मञ्जूषा said...

अम्बुज,
तुम्हारी कई कविताओं को पढ़ चुके हैं हम.....
और बहुतों को सराहा भी है...लेकिन यह कविता एक पूर्ण कविता है....इस कविता को पढ़ कर में लगा कि शब्द, भाव, लक्ष्य सब कुछ अपनी पूर्णता पर है...
तुम्हारे ब्लॉग की शान बन गयी यह कविता...
बधाई हो तुम्हें....

वाणी गीत said...

जिस राह की कोई मंजिल नहीं ...उस पर चलते रहना भी कम नहीं ...
हम जो चलने लगे ...चलने लगे है रास्ते ...ना मंजिल का पता हो ....तो क्या ...!!

मनोज कुमार said...

अच्छी लगी रचना।

Ankush Agrawal said...

nice one buddy...
chalte to sab apane raasto pe hai dost, magar
hamraahi ka saath use jindagi bana deta hai.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

Ambarish said...

dhanyawad ada di.. kal kaha tha maine mahfooz bhai se ki kuch alag sa hai aur main post karne se dar raha tha.. par finally maine kar diya post...
ankush, mere bhai, tum bilkul wahan pahunche jahan main isko likh kar pahuncha tha...

निर्मला कपिला said...

के ऐ मुसाफिर,
थमना नहीं,
कई मुकाम बाकी है,
जीतने के लिए,
मुकम्मल जहान बाकी है...
चाँद सूरज गिने तो क्या,
तारों से भरा,
ये आसमान बाकी है...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई

शरद कोकास said...

बढ़े चलो बढ़े चलो....।

दीपक 'मशाल' said...

bahut hi umda Ambuj

Asha Joglekar said...

आखिरी मंजिल नहीं...
हैं तो बस चंद पड़ाव,
रास्ता बताते हुए,
अगले पड़ाव का...

वाह!

Unknown said...

kitni sundar rachna ! Kehne ko shabd nahi ...
Likhte rahen .

Aabhar .