Tuesday, December 29, 2009

लगभग दो दिन... (द्वितीय भाग)

एक ऐसी ट्रेन,
जिसमें चढ़ना कोई चाहता नहीं,
और उतरने को कोई बचा नहीं,
रुकी है ऐसे स्टेशन पर,
जहाँ कोई नजर नहीं आ रहा...

घंटों रुक कर जब ट्रेन खुली,
जल्दी ही दुबारा रुक गयी,

ड्राईवर ने inverse function लगा दिया शायद...

9 comments:

Udan Tashtari said...

समझने की जुगत में लगा हूँ.पहली बार इन्जिनियर न होने का दुख साल रहा है. :)


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मुझे भी पहली बार इंजिनियर न होने का दुःख है..... पर inverse function समझने के बाद.. .. बहुत अच्छी लगी यह कविता...

मनोज कुमार said...

ऐसी ट्रेन .. बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

और उतरने कोई बचा नहीं,
रुकी है ऐसे स्टेशन,

अम्बरीश जी,
थोड़े से शब्द शायद छूट गए चलती ट्रेन से:

और उतरने "को" कोई बचा नहीं,
रुकी है ऐसे स्टेशन "पर" ,

Ambarish said...

godial sir - धन्यवाद्.. ट्रेन से नहीं छूटे थे शब्द.. कागज से कंप्यूटर तक ट्रान्सफर करने में थोड़ा सा heat loss हो गया... माफ़ी दे दें, सही कर दिया है...

Ambarish said...

जो सोचकर मैने "लगभग दो दिन" लिखी थी, उसमें मैं असफल हुआ हूँ और जिस दिशा में मैने सोचा था वैसी कोई टिप्पणी नही आई.. तो शायद इसका तीसरा और अंतिम भाग diary में ही रह जाए... मैं माफी चाहता हूँ...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अम्बरीश जी,
जीवन के जिस वीरानेपन को आप ट्रेन के माध्यम से उद्घिर्त कर रहे है, वह हम समझ रहे है आप टिप्पणियों पर मत जाइए और तीसरे भाग को भी डायरी से बाहर निकाल डालो !

शरद कोकास said...

तो लोहे का घर तुम्हे भी भा गया ।

Unknown said...

ambuj ji ... aap kripya teesra bhag bhi apni diary se bahar laayen taki ham aur adhik mehsoos kar saken apki abhivyaktion ko .