Saturday, December 05, 2009

सिगरेट भी पूरी नही जलती…

(1)
फ़ुर्सत निकाल कर ज़िंदगी से,
जाओ कभी वापस बचपन,

तुमको तुम मिल जाओ शायद
***
(2)
याद है मुझे अब भी वो दिन,
रो रही थी तुम शायद,

भीगी पलकों से ठीक से दिखा नही
***
(3)
रौशन करते जग को उमर भर,
नील गगन के तारे,

कहाँ जाते हैं ये टूट कर
***
(4)
जी लो ज़िंदगी जब तक है,
वरना ख़त्म तो ही जाएगी,

सुलगती सिगरेट है ज़िंदगी
***
(5)
कौन जी पाया है,
पूरी ज़िंदगी आज तक,

सिगरेट भी पूरी नही जलती
***

10 comments:

Ankush Agrawal said...
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Ankush Agrawal said...

kya cigrate pine se kabhi kisi ka bhala hua hai?
ye to bus nasha hai, kisi ko thode se to kisi ko puri se bhi nahi hota...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

paanchon bahut matlab ki baaten kah gayin hain.......

Chandan Kumar Jha said...

पूरे तीन के तीन लाईनो में कमाल कर दिया तुमने भाई । बहुत अच्छा लगा ।

Udan Tashtari said...

काश!! कभी खुद से मिल पता!!

वाणी गीत said...

फुर्सत निकाल कर जी लो जिंदगी ....वर्ना ख़त्म हो जाएगी सिगरेट की तरह ...कि सिगरेट भी पूरी कहाँ जलती है ...बहुत दार्शनिक ख्याल है ....

चेतावनी .....सिगरेट पीना स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है ....

मनोज कुमार said...
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मनोज कुमार said...

रचना दिल को छू गई। बेहद पसंद आई।

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर! लगे रहो। लिखते रहो।

दिगम्बर नासवा said...

कौन जी पाया है,
पूरी ज़िंदगी आज तक,

सिगरेट भी पूरी नही जलती…..

एक से बढ़ कर एक त्रिवेणी ......... बहुत कुछ सत्य के करीब बीत कर लिखी हुई .......... सच है कोई भी नही जी पाया पूरी जिंदगी .... कमाल की सोच है ..... लाजवाब ........