Monday, December 21, 2009

लगभग दो दिन... (प्रथम भाग)

नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन,
प्लॅटफॉर्म नंबर 14 पर,
कुछ बेजान और,
कुछ साँस लेते,
सामानो के बीच,
अपने आप को,
बहुत अकेला पाया...

तेरी ट्रेन भी ना,
प्लॅटफॉर्म नंबर 2 पर क्यों आई...

6 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सामानो के बीच,
अपने आप को,
बहुत अकेला पाया..

अम्बुज यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.....

अब जल्दी से ...दूसरा भाग भी ले आओ....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत खूब !

तेरी ट्रेन भी ना,
प्लॅटफॉर्म नंबर 2 पर क्यों आई...

क्योंकि

प्लॅटफॉर्म नंबर 14 पर,
कुछ बेजान और,
कुछ साँस लेते,
सामान जो पड़े थे !!!!

स्वप्न मञ्जूषा said...

अरे बुद्धू वो झुमरीतलैया जा रही थी और तुम ...!!
सुन्दर कविता...
पार्ट २ किस प्लेटफोर्म पर और कब आ रही है ??

दीदी..

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया!!
अब इस बारे मे हम क्या बताए....ट्रेनो का तो हर जगह यही हाल है..:

Peeyush Yadav said...

ये ठंडी साँसें लेते 'सामान'...कौन कहता है दुनिया गर्म होती जा रही है..

गौतम राजऋषि said...

देर से आने के लिये मुआफी, अम्बुज!

एकदम हटकर, नये अंदाज की प्रेम-कविता...दूसरे भाग का बेसब्री से इंतजार है।