Sunday, November 01, 2009

जगह नहीं आंसू के लिए...


साथ देती ही क्यों हो,
पल दो पल का मुझे,
ख़्वाबों में कभी कभी,
देने मुझे आंसुओं का साथ,
क़यामत तक के लिए...

समंदर रेत को हमने,
है आंसुओं से कर दिया,
आओ कभी जिंदगी में भी,
निकल कर ख़्वाबों से,
तुम भी देखने के लिए...

आंसू की एक बूँद से पूछा,
क्यों निकले आँखों से बाहर,
नाम लिया था उसने तेरा,
रहती हो तुम आँखों में जो,
जगह नहीं आंसू के लिए...

मरते ही रहते हैं हर पल,
जीते हैं बस ख़्वाबों में ही,
काश कि रह पाते,
ख़्वाबों में ही हम,
उमर भर के लिए...


(The lines written over the picture aren't mine.)

11 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

आंसू की एक बूँद से पूछा,

क्यों निकले आँखों से बाहर,

नाम लिया था उसने तेरा,

रहती हो तुम आँखों में जो,

जगह नहीं आंसू के लिए...


waah !!
bahut khoobsurat...sahi hai...
Ek mayan mein do talwaar bhala kaise rah sakte hain bolo to...!!
Didi...

दीपक 'मशाल' said...

mohabbat ke khoobsoorat ahsaas ko aur bhi khoobsoorat bana diya Ambuj..
bahut hi kamaal ka likha..
vaastav me

aise hi likhte raho
Jai Hind..

अविनाश वाचस्पति said...

आंसू नहीं अब दरकार है
सबको सिर्फ पानी की
वो भी चुल्‍लू भर नहीं
इसलिए चांद पर जा रहे हैं।

M VERMA said...

काश कि रह पाते,
ख़्वाबों में ही हम,
या फिर ख्वाब होते ही नही और ज़िन्दगी ही ख्वाबो सी होती.
बहुत अच्छी रचना

शरद कोकास said...

अच्छी कविता है अम्बरीश ..लगे रहो..।

अजय कुमार झा said...

सुंदर कविता...

ओम आर्य said...

बढिया लगी बन्धू!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Wah! Ambuj......... wah!!!!!!!!

bahut hi khoobsoorti se shabdon ko piro ke..... baehtareen ehsaas ke saath likha hai..........

bahut hi khoobsoorat kavita....

अपूर्व said...

बड़ी गहरी और दिलफ़िगार कविता लिख डाली आपने..खासकर यह पंक्तियाँ घायल कर जाती हैं
काश कि रह पाते,
ख़्वाबों में ही हम,
उमर भर के लिए...

मगर ख्वाब मे भी कहां जान पाते हैं कि यह ख्वाब है.ख्वाब टूटने तक..फिर जिंदगी भी टूटने के बाद ख्वाब ही रह जाती है

Mishra Pankaj said...

बहुत सुन्दर कविता ....................
पंकज

महेंद्र मिश्र said...

सुन्दर! बहुत खूब!!