१
भूखे तुम, हम ऐश कर रहे
लोकतंत्र की जय जयकार,
आखिर तुमने हमें "चुना" है...
***
२
छुट्टियाँ खराब करके बनाया,
एक सांचा उपर वाले ने,
और तुझे बनाकर उसे तोड़ दिया...
***
३
बेशक बहुत मेहनत का,
होता होगा खुदा का काम,
तुझे देखकर यकीन हो आया है...
***
४
जनतन्त्र में, सुना था
जनता का शासन होता है,
शासन शोषण का फ़र्क खोज रहा हूँ...
(पहले ऐसा लिखा था:
५
जनतन्त्र में, सुना था
जनता का शासन होता है,
'१० जनपथ' में 'जनता' ढूंढ़ रहा हूँ!!!)
12 comments:
(पहले ऐसा लिखा था:५ जनतन्त्र में, सुना था जनता का शासन होता है,
'१० जनपथ' में 'जनता' ढूंढ़ रहा हूँ!!!)
kataaksh ke saath bahut hi sunder aur behtareen rachna........
कमाल की त्रिवेणी... अम्बुज
इसी बात पे सुनो.. ''चटका लगा दिया हमने.. जलवा दिखा दिया तुमने.. तारा..''
:) जय हिंद...
कमाल की त्रिवेणी
सच में बेहतरीन ।
मित्र, दस जनपथ कोई जनता के लिए थोड़े ही है जो वहां जनता को ढूंढने निकले हो। वहां केवल नेता ही मिलते-दिखते हैं।
बेशक बहुत मेहनत का,
होता होगा खुदा का काम,
तुझे देखकर यकीन हो आया है...
इस उम्र में ये तेवर.........बहुत ही अच्छे..! अच्छा लिकते रहिये हमारी शुभकामनाये
राजनीति की पोल-खोल..
अंतिम पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर और सच्ची..
बधाई..
प्रतीक माहेश्वरी
बहुत बढ़िया ......लगे रहो !
sahi...politics pe bhi likhna suru kar diya..!!
'१० जनपथ' में 'जनता' ढूंढ़ रहा हूँ!!!
दस जनपथ एक सत्ता-समुद्र है जहाँ पहुँच कर जनता भी जनता नही रहती...
अच्छा लिख रहे हो आप..
अच्छा लिखा है अम्बुज....बहुत अच्छा।
और तुम्हारी मैथिली ने चौंका दिया।
:-)
waah Trevani......gulzaar saab ke haath se nikal aap tak pahuchi.....bahut solid kamaal
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