(१)
अब तो आदत सी हो गयी है,
सितम सहने की हमें,
कभी इंटरनेट तो कभी तुम...
***
(२)
डर लगता है मुझे,
कैसे काटेंगे बिन तेरे,
उम्र है कोई रात नही है...
***
(३)
चलते रहे सीधी लाइन पर,
लिए मन में पुनर्मिलन की आस,
हम दोनों की ज्यामिति कमजोर थी...
***
(४)
पहुँच तो गया था मैं,
सही वक़्त पर तुझे मनाने,
क्या पता था, तेरी घड़ी फास्ट है...
***
(५)
जाने कबसे घड़ी ख़राब थी,
ठीक करवा कर ले आया हूँ,
समय अब भी सही नहीं हुआ...
***
अब तो आदत सी हो गयी है,
सितम सहने की हमें,
कभी इंटरनेट तो कभी तुम...
***
(२)
डर लगता है मुझे,
कैसे काटेंगे बिन तेरे,
उम्र है कोई रात नही है...
***
(३)
चलते रहे सीधी लाइन पर,
लिए मन में पुनर्मिलन की आस,
हम दोनों की ज्यामिति कमजोर थी...
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(४)
पहुँच तो गया था मैं,
सही वक़्त पर तुझे मनाने,
क्या पता था, तेरी घड़ी फास्ट है...
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(५)
जाने कबसे घड़ी ख़राब थी,
ठीक करवा कर ले आया हूँ,
समय अब भी सही नहीं हुआ...
***
11 comments:
bahut sunder..... abhivyakti ke saath ..... behtareen kavita....
बहुत सुंदर कल्पना हैं .. सब रचना अच्छी लगीं .. दोनो की ज्यामिति कुछ कमजोर तो हैं .. पर पूरी नहीं .. समानांतर रेखाएं भी अनंत में जाकर मिलती है !!
सभी त्रिवेणियॉं बहुत बढिया हैं । मुझे ये खास पसंद आयी ।
पहुँच तो गया था मैं,
सही वक़्त पर तुझे मनाने,
क्या पता था, तेरी घड़ी फास्ट है...
टेम्पलेट खूब सुन्दर लगाई है ।
कमाल की त्रिवेनियां…………………लिखते रहे………
तकनीकी आदमी जब कविताई पर उतरता है तो कमाल करता है।
आप ने साबित कर दिया।
डर लगता है मुझे,
कैसे काटेंगे बिन तेरे,
उम्र है कोई रात नही है...
बहुत ही सुन्दर वाह!
ek se badhkar ek hain zanab
वाह अम्बुज,
क्या वापसी की है.
तुम्हारी क्लास में है क्या ?
अच्छी हैं अम्बुज...पहली वाली का अंदाज खूब है। कभी इंटरनेट कभी तुम...अहा!
amazing lines ...
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