Saturday, November 28, 2009

ज्यामिति कमजोर थी...

(१)
अब तो आदत सी हो गयी है,
सितम सहने की हमें,


कभी इंटरनेट तो कभी तुम...
***
(२)
डर लगता है मुझे,
कैसे काटेंगे बिन तेरे,


उम्र है कोई रात नही है...
***
()
चलते रहे सीधी लाइन पर,
लिए मन में पुनर्मिलन की आस,


हम दोनों की ज्यामिति कमजोर थी...
***
(४)
पहुँच तो गया था मैं,
सही वक़्त पर तुझे मनाने,


क्या पता था, तेरी घड़ी फास्ट है...
***
(५)
जाने कबसे घड़ी ख़राब थी,
ठीक करवा कर ले आया हूँ,


समय अब भी सही नहीं हुआ...
***

11 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut sunder..... abhivyakti ke saath ..... behtareen kavita....

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर कल्‍पना हैं .. सब रचना अच्‍छी लगीं .. दोनो की ज्‍यामिति कुछ कमजोर तो हैं .. पर पूरी नहीं .. समानांतर रेखाएं भी अनंत में जाकर मिलती है !!

अर्कजेश said...

सभी त्रिवेणियॉं बहुत बढिया हैं । मुझे ये खास पसंद आयी ।
पहुँच तो गया था मैं,
सही वक़्त पर तुझे मनाने,

क्या पता था, तेरी घड़ी फास्ट है...

टेम्‍पलेट खूब सुन्‍दर लगाई है ।

Chandan Kumar Jha said...

कमाल की त्रिवेनियां…………………लिखते रहे………

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

तकनीकी आदमी जब कविताई पर उतरता है तो कमाल करता है।
आप ने साबित कर दिया।

M VERMA said...

डर लगता है मुझे,
कैसे काटेंगे बिन तेरे,

उम्र है कोई रात नही है...

बहुत ही सुन्दर वाह!

अनिल कान्त said...

ek se badhkar ek hain zanab

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

वाह अम्बुज,
क्या वापसी की है.

शरद कोकास said...

तुम्हारी क्लास में है क्या ?

गौतम राजऋषि said...

अच्छी हैं अम्बुज...पहली वाली का अंदाज खूब है। कभी इंटरनेट कभी तुम...अहा!

जोगी said...

amazing lines ...