पूछते रहते थे लोग,
अक्सर मुझसे ये सवाल,
किसके लिए लिखते हो,
कौन है वो खुशनसीब,
जिसके लिए लिखते हो...
बेकार था मेरा बताना,
कि बस यूँ ही लिख देता हूँ,
किसी ने ये ना माना,
कि अपने लिए लिखता हूँ...
पर हाँ ये सच है कि वो मैं नहीं,
कोई और ही है वो,
जिसके लिए लिखता हूँ,
वो काल्पनिक चिड़िया...
जिसका कोई अस्तित्व है भी या नहीं,
मुझे पता नहीं,
मुझे खबर नहीं,
पर हाँ इतना जानता हूँ,
कोई तो है जो कहता है,
मैं हूँ,
और तेरे लिए ही हूँ,
पर उसकी सुनु तो,
पता नहीं क्यों अपने रूठ जाते हैं,
कितने सारे सपने टूट जाते हैं...
सोचता हूँ कभी ये सब छोड़ दूँ,
उस अनजान चिड़िया से मुंह मोड़ लूँ,
पर जाने क्यों दिल कहता है,
वो अजनबी होकर भी अजनबी नहीं,
वो अजनबी नहीं सिर्फ अनजान है,
एक अनजान चिड़िया,
वो काल्पनिक चिड़िया...
अक्सर मुझसे ये सवाल,
किसके लिए लिखते हो,
कौन है वो खुशनसीब,
जिसके लिए लिखते हो...
बेकार था मेरा बताना,
कि बस यूँ ही लिख देता हूँ,
किसी ने ये ना माना,
कि अपने लिए लिखता हूँ...
पर हाँ ये सच है कि वो मैं नहीं,
कोई और ही है वो,
जिसके लिए लिखता हूँ,
वो काल्पनिक चिड़िया...
जिसका कोई अस्तित्व है भी या नहीं,
मुझे पता नहीं,
मुझे खबर नहीं,
पर हाँ इतना जानता हूँ,
कोई तो है जो कहता है,
मैं हूँ,
और तेरे लिए ही हूँ,
पर उसकी सुनु तो,
पता नहीं क्यों अपने रूठ जाते हैं,
कितने सारे सपने टूट जाते हैं...
सोचता हूँ कभी ये सब छोड़ दूँ,
उस अनजान चिड़िया से मुंह मोड़ लूँ,
पर जाने क्यों दिल कहता है,
वो अजनबी होकर भी अजनबी नहीं,
वो अजनबी नहीं सिर्फ अनजान है,
एक अनजान चिड़िया,
वो काल्पनिक चिड़िया...
17 comments:
wah! bahut khoob...........
wo kaalpnik chidiya........
\
baht achcha laga padh kar...........
उम्दा लफ्ज़
उम्दा जज़्बा
उम्दा सजावट
_____बधाई इस उम्दा कविता के लिए
यूँ ही लिखते रहिये. उस अनजान से इतने फासले न रहेंगे.
मेरी शुभकामनायें !
तुम्हारा मेल मिला था। शुक्रिया...पहले तो ये बता दूँ कि तुम्हारा नाम बहुत भाया...फिर कुमार विश्वास साब की रचनाओं के आफर के लिये धन्यवाद, लेकिन अब मेरे पास उनका पूरा संकलन आ गया है।
तुम्हारी कुछ रचनायें पढ़ी अभी मैंने। अच्छा लिखते हो...फौंट-साइज थोड़ा छोटा रखना...और कविताओं में लय है, प्रवाह है। कभी वर्षों पहले मैंने भी आई.आई.टी. की प्रवेश-परिक्षा निकाली थी...लेकिन जुनून कहीं और ले गया जिसके लिये मेरी माँ अब तक खफ़ा है, इन पंद्रह वर्षों बाद भी\ आज तुम्हें देख कर वो सब याद हो आया....
लिखते रहो....
बहुत सुन्दर रचना, वह कल्पनिक चिड़िया तो वास्तविक सी लगती है ।
nice one!!
behatreen rachna, taazgi se bhari kavita likhi hai Apoorv. keep it up. :)
वो अजनबी होकर भी अजनबी नहीं,
वो अजनबी नहीं सिर्फ अनजान है,
बहुत खूब
अच्छा लगा
भई हम भी अपने कॉलेज के दोस्तो को अब तक ढूँढ रहे है ताकि उन तक कविता पहुंचा सके ।
बहुत ही अच्छी रचना है , ऐसे ही लिखते रहिये। बधाई !!!
बिलकुल सही रचना है पाठक हर कृ्ति को लेखक के साथ जोड कर ही देखता है। सब के साथ अक्सर ऐसा होता है मगर आप अपनी कल्पनायें सजाते रहें
बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्
क्या बात है अम्बुज बाबू...!!
काल्पनिक चिडिया बहुत सुन्दर होगी जहाँ भी होगी.....
और अब तो वो अपना असर भी दिखाने लगी है.....देखो कितनी दूर तक उडी है....और कितनो को छू कर आई है.....हमारे पास कनाडा में तो बहुत पहले ही आ गयी थी ...हा हा हा
सुन्दर कविता....बस लिखते रहो....
दीदी
बहुत अच्छी रचना है आप की . बहुत बहुत बधाई....
आपने 'अदा' जी के ब्लॉग पर मेरी टिपण्णी में गलती पकडी उसके लिए आपका दिल से शुक्रगुजार हूँ...इंसान गलतियों का पुतला है...और उसे अपनी गलत मान लेनी चाहिए...
नीरज
maaf karna Ambarish kal tumhara naam Apoorv likh gaya. :)
lekin Krishna ne Ayodhya kab chhodi? aur Ayodhya chhodne ka Radha se kya talluk?
:) just kidding.
likhte raho, padhte raho....
बहुत ही सुन्दर भाव
शब्द
और भाव समायोजन ..........
वाह काल्पनिक चिडिया को दाने डालो तो जरुर एक दिन आएगी!!
shukriya...
waise ye kavita bhi kalpanik hi thi!!!!
Post a Comment