Monday, October 05, 2009

वो कली मुस्काई

वो कली मुस्काई,
और गुलाब बन गयी,
देखते ही हो जाये नशा,
ऐसा वो शराब बन गयी...

यूँ ही इतनी खूब थी,
वो सबका ख्वाब बन गयी,
निकली जब सज संवर के,
और लाजवाब बन गयी...

जिसने भी देखा एक झलक,
उसी के दिल का ताज बन गयी,
वो कली मुस्काई,
और गुलाब बन गयी...

4 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

अच्छा तो अम्बुज बाबू छुट्टियाँ मनाने गए थे !!!
बहुत ही अच्छी बात....और अब तो बस जम के पढाई करनी है न....
रही बात कविता की तो....
खूबसूरत ख्याल, नाज़ुक अहसास, और दिली ज़ज्बात ....
कुल मिला कर कविता मोहक है....

Ambarish said...

han adaaji.. chuttiyan khatam aur padhaai shuru ho chuki hai..
shukriya..

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर अम्बुज भाई ।

ऐसा= ऐसी

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

wah .ambuj bahut khoob bhai...train ke safar ka chcha use kiya bhaut khoob....... isey kahte hain creativity.......

वो कली मुस्काई,
और गुलाब बन गयी... bahut achchi lagi yeh line..........

chalo ab thakaan utaar lo.........