Wednesday, October 14, 2009

पनाहों में तेरी हम, एक ठिकाना चाहते हैं...

चमन के फूल भी,
तेरी तारीफ में खिलते हैं, 
मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

तासीर इस हुस्न की ऐसी 
सब को है तसव्वुर तेरा, 
खोए तेरे ही ख़याल में, 
सब दिन रात रहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

तारीफ में तेरी जो चाँद, 
अपने तरानो में कहा, 
तेरे हुस्न की तौहीन इसे, 
मेरे जज़्बात कहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

हुस्न और हिज़ाक़त के, 
मेल ऐसे ना देखे हमने, 
मुकम्मल जहाँ में बस, 
एक आप ऐसे रहते हैं...  

मैं ही नही कहता ये, 
यहाँ सब लोग कहते हैं...  

परस्तिश करें तेरी, 
कहती हैं ख्वाहिशें, 
खुदा तुमको बनाने का,
एक बहाना चाहते हैं...

ये सब नही कहते होंगे, 
बस हम ही कहते हैं...
अब तो चाहत नहीं,
इसके सिवा कुछ भी,
पनाहों में तेरी हम, 
एक ठिकाना चाहते हैं...  
ये सब नही कहते होंगे, 
बस हम ही कहते हैं...

12 comments:

M VERMA said...

कविता आपकी
बहुत खूब है
जैसे हरी-हरी
नर्म दूब है
मैं भी कहता ये,
यहाँ सब लोग कहते हैं...

Udan Tashtari said...

बढ़िया है..
ये सब नही कहते होंगे,
बस हम ही कहते हैं...

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर!!

ये सब नही कहते होंगे,
बस हम ही कहते हैं...

Mishra Pankaj said...

सुन्दर लिखा है अम्बरीश जी आप कल आप हमारे चर्चा ब्लॉग पर है

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा रचना लगी। बहुत-बहुत बधाई

Chandan Kumar Jha said...

वाह !!! कमाल कर दिया आपने । बहुत सुन्दर, ये हम नहीं सब कहते है :)

गौतम राजऋषि said...

"मैं ही नही कहता ये,
यहाँ सब लोग कहते हैं..." का उन्वान खूब बन पड़ा है और फिर आखिरी का वो ट्विस्ट " ये सब नही कहते होंगे,बस हम ही कहते हैं" ने चौंका दिया। ये ही चौंकाना कवि का कमाल है।

अहा!

Mahfooz Ali said...

तासीर इस हुस्न का है ऐसा,
सब को है तसव्वुर तेरा,
खोए तेरे ही ख़याल में,
सब दिन रात रहते हैं...

wah! bahut khoob rahi yeh lines.....


अब तो चाहत नहीं,
इसके सिवा कुछ भी,
पनाहों में तेरी हम,
एक ठिकाना चाहते हैं.


isne to waaqai mein complete kar diya .........

gud ..........

स्वप्न मञ्जूषा said...

अब तो चाहत नहीं,
इसके सिवा कुछ भी,
पनाहों में तेरी हम,
एक ठिकाना चाहते हैं...


ये सब नही कहते होंगे,
बस हम ही कहते हैं...

Ambuj babu,
i kaa ho raha hai...itna urdu tum kab seekh liye ho???
are baap re !!
i to bahut bahut bahut hi accha likh diye ho bhai...
aur LAST ka TWIST to bas hairaan kar gaya hamko.
bahut khoob...
bas aise hi likhte raho, aur padhai bhi karte raho..
Didi

दर्पण साह said...

behterin kavita....

"तासीर इस हुस्न का" ?

it has to be "taasir is husn ki"
(typo mistake maybe !!)
:)

शरद कोकास said...

एक फिल्मी गीत याद आया " चमन के फूल भी तुझको गुलाब कहते हैं... कुछ नया लिखो भाई ।

Ambarish said...
This comment has been removed by the author.