सिर्फ तुम ही थे,
पर तुम अब भी क्यों हो,
जबकि तुम तो चले गए...
सफलता के आसमां पर आकर,
याद आ रहे हैं वो रेत जिससे,
ज़मीं पर हमने खेला है...
सफ़र था तो हमसफ़र थे,
ऊफ़्फ़, ये जीतने की ललक!!
मंजिल पे दिल अकेला है...
सोचते थे नीचे से देखकर,
क्या होगा उस शिखर पर?
कुछ नहीं, ग़म-ए-तन्हाई है...
पीछा ही करते रह गए हम,
जिंदगी का जिंदगी भर, और अब
बस यादों की परछाई है...
(और अंत में, रुस्तम सहगल जी की पंक्तियाँ:
क्या खबर थी, इस तरह से वो जुदा हो जायेगा,
ख्वाब में भी उसका मिलना, ख्वाब ही बन जायेगा...)
(और अंत में, रुस्तम सहगल जी की पंक्तियाँ:
क्या खबर थी, इस तरह से वो जुदा हो जायेगा,
ख्वाब में भी उसका मिलना, ख्वाब ही बन जायेगा...)
8 comments:
पीछा ही करते रह गए हम,
जिंदगी का जिंदगी भर, और अब
बस यादों की परछाई है...
bas yaadon ki parchhai hai........... wah! yeh line dil ko chhoo gayi...........
ati sunder kavita.........
It's really a great one dear...
तब जबकि तुम थे,
सिर्फ तुम ही थे,
पर तुम अब भी क्यों हो,
जबकि तुम तो चले गए...
kuch log kabhi nahi jaate...bas.. bas jaate hai hamesha ke liye...shayad ye wahi ho...
abhut sundar likha hai...
पीछा ही करते रह गए हम,
जिंदगी का जिंदगी भर, और अब
बस यादों की परछाई है...
ye kyun likha hai ...??
abhi to zindagi bas shuru hi to hui hai..buddhu kahin ke...!!
didi
kafi khoobsoorat ban padi hai ye kavita Ambuj..... paripakvata jhalak rahi hai..
पीछा ही करते रह गए हम,
जिंदगी का जिंदगी भर, और अब
बस यादों की परछाई है...
इसी का नाम जिन्दगी है, हम जिन्दगी भर जिन्दगी का पीछा करते रहते है.
गहरे है दर्द आपके .....भावो की गहराई मे मै भी कही खो गया बन्धू!
पीछा ही करते रह गए हम,
जिंदगी का जिंदगी भर, और अब
बस यादों की परछाई है...
aapki is post pe to ek bahut bade (??) lekhah ki kavita hi chipka raha hoon....
(Bade lekhak pata chal jaiye to soochit karna...
चोरी तो हुई है...
कमरा कुछ खाली खाली सा है.
झांक कर देखा तो सब कुछ,
लग रहा है पहले जैसा ही,
पर कुछ तो जरुर हुआ है गायब,
तभी तो खाली खाली सा है.
चोरी तो हुई है...
han us 6ft ke lekhak ka pata chal gaya hai... so, us lekhak ne socha chalo chal ke $*comment*$ bhi kar aate hain... :)
$ bhi nahi chala :(
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