Sunday, October 25, 2009

ग्रामीण विद्यालय

काश वहां "विकास" न होता,
जहाँ हम पढ़ा करते थे,
पीपल के इक पेड़ तले...

विद्या और विद्यालय दोनों,
ख़ाक हो गए थे फिर जलके,
उस जलते पीपल के तले...
                                                                               
शिक्षक भी घर बैठे बैठे,
"निस्वार्थ" हैं देने लगे ट्यूशन,
उनका धंधा भी फुले फले...

आसमान पर प्राइवेट कोचिंग,
कागजों पर हैं विद्यालय,
अफसरशाही की छांव तले...

गाँव में शिक्षा की ये हालत,
रह न गयी अब देखने लायक,
लो, अम्बुज भी शहर चले...

16 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

wah! bahut khoob

गाँव में शिक्षा की ये हालत,
रह न गयी अब देखने लायक,
लो, अम्बुज भी शहर चले...

lo , bhai ambuj bhi chale shaher ki or.....

kitna sahi chitran kiya hai tumne ambuj......... gr8..........

hats off ........

दीपक 'मशाल' said...

वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर करारी चोट है, बहुत सही अम्बुज.... जियो..

Mishra Pankaj said...

सही है भाई ,,,,,मस्त

M VERMA said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने. तथाकथित विकास के नाम पर हो रहे परिवर्तनो का स्वरूप कुछ विकृत सा दिखता है.

स्वप्न मञ्जूषा said...

गाँव में शिक्षा की ये हालत,
रह न गयी अब देखने लायक,
लो, अम्बुज भी शहर चले...
waah Ambuj babu,
aaj to kamal ki karari maar lagayi hain...
kagazi vidyalayon ko to meri Maa ne khoob pakda hai...jab wo school Inspectress thii, Rnachi, Lohardaga, Khunti aur Gumla district ki...aur ham bhi khoob gaye unke saath dekhne...Teachers Headmasters, ka chahra dekhne layak rehta tha...kaise daudal daudal aate the apna ghar se lungi samhaalte...ha ha ha ha
School hai par kagaz par...
School Ghar hai par kahagz par...
Students hain par kagaz par...
lekin Tankha asli wo bhi har maheene...
Bahut badhiya kavita kah diya...
Didi..

Kusum Thakur said...

"गाँव में शिक्षा की ये हालत,
रह न गयी अब देखने लायक,
लो, अम्बुज भी शहर चले..."

बहुत सही लिखा है आपने ।
ऐसे ही लिखते रहिये ।

ओम आर्य said...

बेहद सुन्दर रचना!

Asha Joglekar said...

बहुत ही सटीक व्यंग शिक्षा की हालत पर । बहुत साल पहले हमारे भाई साहब की ल्खी कविता की दो पंक्तियों को उद्धृत करने का लोभ संवरण नही कर पा रही हूँ ।

कॉलेजों में सन्नाटे और ट्यूशन गली गली
अजब शिक्षा पध्दती चली ।

अनिल कान्त said...

nice poem brother

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

चोरी तो हुई है...


कमरा कुछ खाली खाली सा है.
झांक कर देखा तो सब कुछ,
लग रहा है पहले जैसा ही,
पर कुछ तो जरुर हुआ है गायब,
तभी तो खाली खाली सा है.
चोरी तो हुई है...

Bhaut sundar भाई, मैं भी वर्षो से इसी असमंजस में जी रहा हूँ !

गौतम राजऋषि said...

आह ! एक लाजवाब रचना अम्बुज...करारी चोट करता हुआ।

प्रिया said...

last one too good....aapke sujhaav ka shukriya

शरद कोकास said...

सही है अब तो गाँव भी शहर होने की राह पर है ..लेकिन कौनसे गाँव? अभी तो कई गाँवो तक रास्ते ही नही जाते ।

दर्पण साह said...

Ambrish bahi aaj fursat se aaiya hoon aapke blog par...

baital ki tarah !!

गाँव में शिक्षा की ये हालत,
रह न गयी अब देखने लायक,
लो, अम्बुज भी शहर चले...


waise jo aapne baat gaon ke vidhyalay ke liye likhi hai wo poore gaaon ke liye laago hoti hai...
kabhi ek sher' likha tha...
(looking big picture)

Mere Gaon ke kuch aur makan zamidosh hue...
Shayad kuch aur log sehar gaye honge

Shayad kuch

Rishu said...

Badhiya likhte ho dost........
Keep sharing!!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

ग्रामीण विद्यालय > पंक्तियाँ सटीक है.